Mystery of Ashoka Inscription and Pillar(रहस्य अशोक शिलालेख एवं स्तंभ का)

 अशोकस्तंभ एवं शिलालेख को पहली बार पढ़ने में सफलता मिली भारत मे आये एक अंग्रेज को

                                                
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जब आप इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पाएंगे कि हिंदुस्तान में सम्राट अशोक का शासन काल 269 ईसा पूर्व से 231 ईसा पूर्व था और अंग्रेज भारत में वर्ष 1600ई. के बाद आये। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस समय अंग्रेज भारत आये थे उस समय के तत्कालीन भारतवर्ष में किसी को नहीं पता था कि सहस्त्राब्दियों पूर्व शासन करने वाले सम्राट अशोक पत्थर की दीवारों पर क्या कुछ लिखवाकर चले गये।

उसी दौरान एक विद्वान अंग्रेज़ ने, अपने अथक परिश्रम द्वारा, सम्राट अशोक द्वारा शिलाओं एवं स्तम्भों पर लिखवाये उन संदेशों को पढ़ लिया, जिसको पढ़े जाने की आशा भारतवासियों ने छोड़ दी थी। आपको जानकर निश्चित रूप से यह अविश्वसनीय लगेगा, लेकिन है यह बिल्कुल सच।

भारतवर्ष के मौर्य राजवंश के महान राजा सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में जो कुछ लिखवाया उसे लंबे समय तक कोई नहीं समझ सका। लेकिन जब एक अंग्रेज भारत आया और उसने सम्राट अशोक द्वारा लिखवाये शब्दों को पहली बार पढ़ा तो लोग-बाग भौचक्के रह गये।

तब देशवासी यह समझ पाये कि सम्राट अशोक अपने देशवासियों से कहना चाहते थे। दरअसल सम्राट अशोक ने भारत की प्राचीन भाषा ब्राह्मी लिपि और खरोष्ठी में अपना संदेश लिखा था। लेकिन विदेशी मुस्लिम लुटेरों और डकैतों ने अपने घोर पैशाचिक कृत्यों से भारतवर्ष की पवित्र धरती पर ऐसी तबाही मचाई की यहाँ का सारा ज्ञान-विज्ञान नष्ट हो कर मृतप्राय सा हो गया था।

तो उस समय सम्राट अशोक की लिखी अजीबोगरीब भाषा को कोई समझ नहीं सका था। लेकिन जब ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ अंग्रेज भारत आये तो उनमे से कुछ विद्वान और रहस्य प्रेमी भी थे। उन्ही में से से एक अँगरेज़ विद्वान ने अपने प्रयासों द्वारा उन्हें पढ़ लिया।

आज हम जानेंगे कि सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में देश -विदेश में कहाँ कहाँ अपना संदेश लिखवाया था? उनके संदेश लिखवाने के पीछे क्या उद्देश्य था? हिंदुस्तान का कोई व्यक्ति उसको क्यों नहीं पढ़ सका ? वह कौन सा अंग्रेज व्यक्ति था जिसने सम्राट अशोक के काल की लिखी हुई भाषा को पढ़ लिया?

सम्राट अशोक के संदेशों को पढ़ने वाला वह अंग्रेज कब भारत आया ? उसके भारत आने का क्या उद्देश्य था? आज इन सब बातों के रहस्य से पर्दा उठेगा। साथ ही यह भी पता चलेगा कि वह कौन सी बात थी जो सम्राट अशोक अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी आने वाली पीढ़ी को बताना चाहते थे ? जिसके कारण उन्होंने अपने जीवित रहते हुए कई बातें पत्थर पर पर खुदवाई।

आपको जानकारी होनी चाहिए कि भारतवर्ष के इस सम्राट अशोक का जीवन दो अध्यायों में विभक्त था। एक वह सम्राट अशोक जो कलिंग युद्ध के पहले का था, जो किसी भी कीमत पर युद्ध जीतना चाहता था। दूसरा अशोक वह जो कलिंग युद्ध के बाद का था। क्योंकि कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक का जीवन बदल कर रख दिया था।

ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अशोक कलिंग युद्ध में हुए भारी नरसंहार के कारण कई दिनों तक रोते रहे। यह उनके पश्चाताप के आंसू थे। कलिंग युद्ध के बाद अशोक मानव जाति और मानवता से प्यार करने लगे थे। कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक ने अपना जीवन एक महात्मा की तरह बना लिया था।

अब वह वास्तव में धर्म की शरण में आ गए थे जहाँ केवल मानव कल्याण की भाषा बोली जाती थी। उस लोक कल्याणकारी भाषा को जन- जन तक पहुंचाने के लिए अशोक ने स्वयं को ही नहीं बल्कि अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को भी इस कार्य के लिए लगा दिया था।

सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में देश-विदेश के पत्थरों पर जो धर्म के अनेक संदेशों को पत्थर की दीवारों पर लिखवाया, उन्हें शिलालेख के नाम से जाना जाता है। महान अशोक द्वारा सैकड़ों की संख्या में लिखवाये गये इन अभिलेखों में से अब तक 33 अभिलेखों को प्राप्त किया जा सका है।

सम्राट अशोक ने पत्थर की दीवारों पर मोम सी उदार बातें 269 ईसा पूर्व से 231 ईसा पूर्व के अंतराल में लिखवाई थीं। यह शिलालेख भारतवर्ष केअ तिरिक्त बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल आदि देशों में मिले है। पत्थर की दीवारों पर सम्राट अशोक ने शन्ति, बंधुत्व एवं मानवता से जुड़ी हुई बातें लिखवाई थीं।

शिलालेखों और स्तंभों पर लिखी जाने वाली भाषा भारतवर्ष की अति प्राचीन लिपि मागधी, ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि आदि थी। शिलालेख के शब्दों के भावों में में सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध के भारी नरसंहार की बाद आँखो से बहने वाले पश्चाताप के आंसू भी हैं।

भारत में सम्राट अशोक के यह शिलालेख धौली (उड़ीसा) कालसी (उत्तराखंड) आदि स्थानों में पाये गये हैं। सम्राट अशोक के शासनकाल में लिखवाये गए संदेशों को उनके शासन काल के कई सौ वर्ष पश्चात कोई भी पढ़ने में असमर्थ रहा। पूर्व में यह कोतुहल का विषय था कि वह क्या बात थी जो अपने शिलालेखों के माध्यम से सम्राट अशोक भारतवर्ष के जनमानस से कहना चाहते थे ?

लेकिन उन शिलालेखों पर लिखी जाने वाली भाषा देवनागरी न होकर भारतवर्ष की प्राचीन ब्राह्मी लिपि और खरोष्ठी भाषा थी। समय बदलता गया और प्राचीन भाषायें विलुप्त होती चली गई। ब्राह्मी लिपि और खरोष्ठी आदि भाषा का ज्ञान न होने के कारण लोग सम्राट अशोक के महत्वपूर्ण संदेशों को समझ पाने में असमर्थ थे।

लेकिन वर्ष 1837 का वह समय था, जब इस बात का रहस्योद्घाटन होने का समय आ चुका हो था, कि सम्राट अशोक ने पत्रों और स्तंभों पर क्या लिखवाया? क्योंकि इस समय एक अंग्रेज जिसका नाम जेम्स प्रिंसेप था भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी के रूप में भारत आया। जेम्स प्रिंसेप उन अंग्रेज अधिकारियों में से एक था जो सचमुच भारत का दिल से भला चाहता था।

जेम्स प्रिंसेप ने जब भारतवर्ष आकर देश में भ्रमण किया तो सम्राट अशोक के द्वारा पत्थर पर लिखी हुए वह संदेश उसे मिले जो सदियों से अपठनीय थे। जब जेम्स प्रिंसेप ने सम्राट अशोक की उन अभिलेखों को देखा तो कुछ ही समय के परिश्रम के बाद उसे पढ़ लिया।

ऐसा लगता था कि उन अभिलेखों को जेम्स प्रिंसेप की ही प्रतीक्षा थी। जेम्स प्रिंसेप ही वह व्यक्ति था जिसमें सम्राट अशोक के शिलालेखों का रहस्य खोला और अशोक की वाणी को भारतवर्ष की तत्कालीन जनमानस तक पहुंचाया। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप अत्यंत विद्वान व्यक्ति थे ।

                       रणधीर कुमार झा

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